[Advaita-l] Dying to Live Peacefully - III
H S Chandramouli
hschandramouli at gmail.com
Fri Jan 19 06:06:48 EST 2018
2018-01-19 16:09 GMT+05:30 V Subrahmanian <v.subrahmanian at gmail.com>:
<< ब्राह्मणस्य तु देहोऽयं न कामार्थाय जायते । इह क्लेशाय तपसे प्रेत्य
त्वनुपमं सुखम् ।। – महाभारत (१२.३२९.२२). अर्थ : ब्राह्मणका देह सुखोपभोगके
लिए उत्पन्न नहीं हुआ । इहलोकमें क्लेश भोगकर तपाचरण करनेके लिए ब्राह्मणका
जन्म हुआ है । ऐसा करनेपर ही जीवको निरुपम सुख प्राप्त होगा । इस शास्त्रवचनके
आधारपर यह कहा जा सकता है कि तप करने हेतु ही ब्राह्मण वर्णके लोगोंका जीवन
समर्पित था और है । सर्वप्रथम ब्राह्मण रुपी साधक जीव, साधना कर आत्मज्ञानी
बनता है, तत्पश्चात् अपने तपसे अर्जित फलको ...
The above Mahabharata verse says: The body of the Brahmana is not meant for
merrymaking. It is to be subjected to a lot of hard work, trials, so that
after death there will be incomparable bliss.
मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये ।
यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥ ३ ॥
भाष्यम्
<http://advaitasharada.sringeri.net/display/bhashya/Gita?page=7&id=BG_C07_V03&hlBhashya=%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A5%81%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%BE%E0%A4%82#bhashya-BG_C07_V03>
मनुष्याणां मध्ये सहस्रेषु अनेकेषु कश्चित् यतति प्रयत्नं करोति सिद्धये
सिद्ध्यर्थम् । तेषां यततामपि सिद्धानाम् , सिद्धा एव हि ते ये मोक्षाय यतन्ते,
तेषां कश्चित् एव हि मां वेत्ति तत्त्वतः यथावत् ॥ ३ ॥ >>,
I am sorry I am not sure if this is intended to reinforce my statement or
to contradict it. So unable to respond.
Regards
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