[Advaita-l] Surya is verily Brahman
V Subrahmanian
v.subrahmanian at gmail.com
Sat Apr 20 10:20:06 EDT 2019
Surya is verily Brahman
During a discussion on FB, there arose the question of the Lord giving
upadesha to Surya as per the opening verse of the 4th chapter of the
Bh.gita. The following note came up in the course of the chat:
A question-solution that came to my mind a few hours back got
authenticated here: In our madhyahnikam we have an upasthanam for surya
'aasatyena rajasaa....surya aatmaa jagatah tasthushascha..' which means
'Surya is the very Atma of the entire creation and also its support..When
such is the case how is that surya is 'given' the upadesha of Adhyatma yoga
by Bhagavan? The answer is: Actually, Surya is Omniscient Bhagavan himself.
Bhagavan, 'gives' the knowledge to himself in another form. Those who
understand Hindi can appreciate this material taken from a website whose
address is also given below, mandatorily: [The analogy of Arjuna, verily a
Jnani, Nara, non-different from Narayana as per Veda Vyasa in Mahabharata
Drona Parva, being given the Gitopadesha by the Lord. It is just a leela.]
प्रश्न- भगवान ने सृष्टि के आदिकाल में सूर्य को कर्मयोग का उपदेश क्यों
दिया? उत्तर- 1. सृष्टि के आरंभ में भगवान ने सूर्य को ही कर्मयोग का वास्तविक
अधिकारी जानकर उन्हें सर्वप्रथम इस योग का उपदेश दिया। 2. सृष्टि में जो
सर्वप्रथम उत्पन्न होता है, उसे ही उपदेश दिया जाता है; जैसे- ब्रह्माजी ने
सृष्टि के आदि में प्रजाओं को उपदेश दिया।[1] उपदेश देने का तात्पर्य है-
कर्तव्य का ज्ञान कराना। सृष्टि में सर्वप्रथम सूर्य की उत्पत्ति हुई, फिर
सूर्य से समस्त लोक उत्पन्न हुए। सबको उत्पन्न करने वाले[2] सूर्य को
सर्वप्रथम कर्मयोग का उपदेश देने का अभिप्राय उनसे उत्पन्न संपूर्ण सृष्टि को
परंपरा से कर्मयोग सुलभ करा देना था। 3. सूर्य संपूर्ण जगत के नेत्र हैं। उनसे
ही सबको ज्ञान प्राप्त होता है एवं उनके उदित होने पर प्रायः समस्त प्राणी
जाग्रत हो जाते हैं और अपने-अपने कर्मों में लग जाते हैं। सूर्य से ही
मनुष्यों में सर्वत्र-परायणता आती है। सूर्य को संपूर्ण जगत की आत्मा भी कहा
गया है- ‘सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ।’[3] अतः सूर्य को जो उपदेश प्राप्त
होगा, वह संपूर्ण प्राणियों को भी स्वतः प्राप्त हो जायगा। इसलिये भगवान ने
सर्वप्रथम सूर्य को ही उपदेश दिया। वास्तव में नारायण के रूप में उपदेश देना
और सूर्य के रूप में उपदेश ग्रहण करना जगन्नाट्यसूत्रधार भगवान की एक लीला ही
समझनी चाहिये जो संसार के हित के लिये बहुत आवश्यक थी। जिस प्रकार अर्जुन महान
ज्ञानी नर ऋषि के अवतार थे; परंतु लोकसंग्रह के लिये उन्हें भी उपदेश लेने की
आवश्यकता हुई, ठीक उसी प्रकार भगवान ने स्वयं ज्ञान स्वरूप सूर्य को उपदेश
दिया, जिसके फलस्वरूप संसार का महान उपकार हुआ है, हो रहा है और होता रहेगा।
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साभार krishnakosh.org
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