[Advaita-l] Is the Atma an object or not? - A short article in Hindi

V Subrahmanian v.subrahmanian at gmail.com
Mon Jan 21 08:50:29 EST 2019


Sri Rahul has posted this article in his FB wall:  I have placed a comment
to that article, which too, I am copying here, below the article:

[Anyone interested may please give a gist of the post in English. Thanks.]


आत्मा का अविषयत्व एवं विषयत्व ============

प्रश्न :- आत्मा विषय है या अविषय ?

उत्तर :- अविषय और विषय दोनों है ।

स्वप्रकाश होनेसे स्वरूपतः अविषय होकर ही प्रतिनियत भासमान है -

// अवेद्यत्वे सति. अपरोक्षव्यवहारयोग्यतात्यन्ताभावानधिकरणत्वम्
स्वप्रकाशत्वम् । //

अवेद्य - फलव्याप्ति का अविषय है, इसलिए घटादि फलव्याप्य अपरोक्षव्यवहारयोग्य
वस्तुयों में लक्षण की अतिव्याप्ति नहीं हुई ।

उपाहित आत्मा विषय भी है -

// युष्मत्प्रत्ययापेतस्य च प्रत्यगात्मनः अविषयत्वं ब्रवीषि । उच्यते — न
तावदयमेकान्तेनाविषयः, अस्मत्प्रत्ययविषयत्वात् अपरोक्षत्वाच्च
प्रत्यगात्मप्रसिद्धेः । //

~ अध्यासभाष्य

अहंप्रत्यय / अहंवृत्ति एक चिज्जड़ग्रंथि है । आत्मा-अनात्मा का मिथुनीकृत
अवस्थाविशेष है । अहंकार सत्त्वप्रधानहोनेसे स्वच्छ होता है , इसलिए वह चैतन्य
का आभास ग्रहण करने में सक्षम है - इसे चिदाभास भी कहते है । यह चिदाभास और
अहंकार में स्वभावतः ही तादात्म्य होता है, जिसका फलस्वरुप ' #अहं_जानामि
<https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%82_%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%BF?source=feed_text&epa=HASHTAG>
'
प्रतीति होती है । यह साभास अहंकार कर्ता, भोक्ता , विकारी , परिच्छिन्न
इत्यादि है ।

अविद्याप्रयुक्त अन्योन्याध्यास से प्रत्यगात्मा एवं साभास अहंकार में
तादात्म्य बन जाता है । इस भ्रान्ति के कारण दोनों का भेद भासमान नहीं होता,
जिसका फलस्वरुप ' #अहमस्मि
<https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BF?source=feed_text&epa=HASHTAG>
'
प्रतीति होती है ।

इस प्रकार प्रत्यगात्मा स्वरूपतः सत्य एवं अविषय होकर भी
अहंकारोपाधितादात्म्यसंपन्नरूपतः वह अनृत है , अतः अहंप्रत्ययविषयत्वेन भासमान
होता है । शुद्धरूप से आत्मा अविषय होकर भी जीवत्वेन वह अहंकाराकार-प्रतीति का
विषय बनता है ।

' #सोsहम्
<https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%B8%E0%A5%8Bs%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A5%8D?source=feed_text&epa=HASHTAG>
'
इस प्रत्यभिज्ञामें अन्तःकरणविशिष्ट ही आत्मा विषय होता है । शुद्ध चिदात्मा
में जन्यज्ञान तथा संस्कार नहीं बन सकते, किन्तु अन्तःकरणविशिष्ट आत्मामें
दोनोंका होना संभव है । इसलिए पूर्वानुभवसे - भूतकालमें हुए प्रत्यक्षसे -
उत्पन्न संस्कारसे सहकृत वर्तमानकालिक वस्तुके चक्षुःसन्निकर्षादि
प्रमाज्ञानके कारण द्वारा उत्पन्न हुआ प्रत्यक्ष से उक्त प्रकारकी
प्रत्यभिज्ञा सिद्ध होती है ।

' #आत्मा_देहेन्द्रियाद्यातिरिक्तः_आत्मत्वात्_चेतनत्वाद्वा
<https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%83_%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D_%E0%A4%9A%E0%A5%87%E0%A4%A4%E0%A4%A8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE?source=feed_text&epa=HASHTAG>
'
इत्यादि अनुमानका विषय आत्मा है एवं अनुमाता अर्थात् अनुमानकर्ता भी आत्मा है
। इससे आत्मामें औपाधिक कर्मकर्तृत्वभाव दोनों ही रहते है, अन्यथा आत्माका
देहेन्द्रियादिसे भिन्न होना अप्रामाणिक हो जायगा ।

नियम यह है - अज्ञान और ज्ञान का विषय एक होनेपर ही तत्-तत् विषयक ज्ञान से
तत्-तत् विषयक अविद्या का नाश हो सकता है । अविद्यानाशक अंतःकरण की अखंडाकार
वृत्ति का विषय है - वृत्त्युपाहित ब्रह्म एवं अज्ञान का विषय है अज्ञानोपाहित
ब्रह्म, क्योंकि केवलमात्र ब्रह्म की उपाधि-रूप से ही अविद्या की स्थिति संभव
है, अन्यथा नहीं ! इसलिए यहाँ भी शुद्धब्रह्म विषय नहीं होता, उपाहित ब्रह्म
ही विषय हो सकता है - इस नियम की हानि नहीं हुई ।
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सन्दर्भ ग्रन्थ :-

१. तत्त्वप्रदीपीका
२. अध्यासभाष्य
३. भामती
४. विवरणप्रमेयसंग्रहः
५. अद्वैतसिद्धिः


Comment: यद्यपि स्वरूप ज्ञान सर्वदा अविषय ही है, वॄत्तिज्ञान तो विषय है |
बृहदारण्यकभाष्य मे श्रीमदाचार्यजी ने कहा है आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः
श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो 2.4.5 सन्दर्भ मे - तस्मात् आत्मा वै अरे
द्रष्टव्यः दर्शनार्हः, दर्शनविषयमापादयितव्यः ; श्रोतव्यः पूर्वम् आचार्यत
आगमतश्च ; पश्चान्मन्तव्यः तर्कतः ; ततो निदिध्यासितव्यः निश्चयेन ध्यातव्यः ;
एवं ह्यसौ दृष्टो भवति श्रवणमनननिदिध्यासनसाधनैर्निर्वर्तितैः ; यदा
एकत्वमेतान्युपगतानि, तदा सम्यग्दर्शनं ब्रह्मैकत्वविषयं प्रसीदति, न अन्यथा
श्रवणमात्रेण ।


warm regards

subbu


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