[Advaita-l] Fwd: {भारतीयविद्वत्परिषत्} Eight meanings of the word Shiva
V Subrahmanian
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Sun Mar 3 22:00:09 EST 2019
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From: Nityanand Misra <nmisra at gmail.com>
Date: Mon, Mar 4, 2019 at 8:11 AM
Subject: {भारतीयविद्वत्परिषत्} Eight meanings of the word Shiva
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‘शिव’ शब्द के आठ अर्थ
महाशिवरात्रि की आप सबको शुभकामनाएँ। भगवान् शिव का एक नाम ‘अष्टमूर्ति’ है, अतः
आज प्रस्तुत हैं चार व्युत्पत्तियों और चार निरुक्तियों के अनुसार ‘शिव’ शब्द
के आठ अर्थ। इस लेख में जो कुछ लिखा वह सब शास्त्रों के आधार पर ही है, कुछ भी
निर्मूल नहीं है।
संस्कृत में √‘शी’ धातु का अर्थ है ‘सोना’। ‘शेते’ = सोता/सोती है। ‘शयन’ शब्द
इसी धातु से आया है। जिसके कारण व्यक्ति सुखपूर्वक सोता है वह है ‘शिव’
(नपुंसक शब्द ‘शिवम्’) अर्थात् कल्याण या मङ्गल।[१] इसी से मिलता-जुलता ‘शेव’
शब्द है जिसका अर्थ है सुखकारी। यह कल्याण या मङ्गल सदैव जिसके पास हों वह है
‘शिव’।[२] इसीलिए ‘शिवताण्डवस्तोत्र’ में कहा गया ‘तनोतु नः शिवः शिवम्’, अर्थात्
“शिव हमारे मङ्गल को फैलाएँ/बढ़ाएँ।” तो “नित्य कल्याण से युक्त” यह पहला अर्थ
है।
अथवा जो अन्यों का कल्याण (‘शिवम्’) करता है वह है ‘शिव’।[३] दूसरा अर्थ।
अथवा सीधे √‘शी’ धातु से ‘शिव’ शब्द है। जिसमें अणिमादि आठों गुण सोते हैं
(=अवस्थित होते हैं) वह है ‘शिवः’।[४] तीसरा अर्थ।
अथवा यह शब्द √‘शो’ धातु (“क्षीण करना”) और ‘वन्’ प्रत्यय से है। जो अशुभ को
क्षीण करता है वह है ‘शिवः’।[५] चौथा अर्थ।
अथवा जो मनुष्यों के ‘शिवम्’ (कल्याण) की इच्छा करते हुए सभी कर्मों में सभी
अर्थों को समेधित (सम्यक् रूप से वर्धित) करता है वह है ‘शिवः’।[६] पाँचवाँ
अर्थ।
अथवा ‘श्’ अर्थात् नित्य सुख और आनन्द, ‘इ’ अर्थात् पुरुष, और व अर्थात् शक्ति
या अमृत। इस प्रकार ‘श्’, ‘इ’, और ‘व’ अर्थात् नित्य सुख और आनन्द, पुरुष, और
शक्ति/अमृत के मेल ‘शिवः’ है।[७] छठा अर्थ।
अथवा ‘शि’ का अर्थ है पापों का नाश करने वाला और ‘व’ का अर्थ है मुक्ति देने
वाला। जो मनुष्यों के पापों का नाश करता है और उन्हें मुक्ति प्रदान करता है
वह है ‘शिव’।[८] सातवाँ अर्थ।
अथवा ‘शि’ का अर्थ है मङ्गल और ‘व’ का अर्थ है देने वाला। जो मङ्गलों का
प्रदाता है वह है ‘शिव’।[९] आठवाँ अर्थ।
टिप्पणियाँ
[१] शेते अनेन इति शिवम्, कल्याणमित्यर्थः। ‘शीङ् स्वप्ने’ धातु से
‘इण्शीभ्यां वन्’ या ‘सर्वनिघृष्वर्ष्वलष्वद्वप्रह्वेष्वा अतन्त्रे’ (उणादि
सूत्र १.१४१, १.१४२) सूत्र से ‘वन्’ प्रत्यय, पृषोदरादित्व से ह्रस्व।
[२] शिवं कल्याणं नित्यमस्येति शिवः, शिव + ‘अर्शआदिभ्योऽच्’ (अष्टाध्यायी
५.२.१२७) से ‘अच्’ प्रत्यय। नित्यत्व का अर्थ ‘भूमनिन्दाप्रशंसासु
नित्ययोगेऽतिशायने, सम्बन्धेऽस्तिविवक्षायां भवन्ति मतुबादयः’ (महाभाष्य
५.२.९४) इस कारिका से है।
[३] शिवयति शिवं करोतीति शिवः। ‘शिव’ शब्द से ‘तत्करोति तदाचष्टे’ (धातुपाठ
गणसूत्र १८७) से ‘णिच्’ और फिर ‘नन्दिग्रहिपचादिभ्यो ल्युणिन्यचः’
(अष्टाध्यायी ३.१.१३४) से पचाद्यच्।
[४] ‘शेरतेऽवतिष्ठन्तेऽणिमादयोऽष्टौ गुणा अस्मिन्निति वा शिवः’ (‘अमरकोष’ पर
भरत की टीका)।
[५] ‘श्यत्यशुभमिति वा शिवः’ (‘अमरकोष’ पर भरत की टीका)।
[६] ‘समेधयति यन्नित्यं सर्वार्थान्सर्वकर्मसु, शिवमिच्छन्मनुष्याणां तस्मादेष
शिवः स्मृतः’ (महाभारत ७.२०३.१२०)।
[७] ‘शं नित्यं सुखमानन्दमिकारः पुरुषः स्मृतः, वकारः शक्तिरमृतं मेलनं शिव
उच्यते’ (शिवपुराण १.१८.७६–७७)।
[८] ‘पापघ्ने वर्तते शिश्च वश्च मुक्तिप्रदे तथा, पापघ्नो मोक्षदो नॄणां
शिवस्तेन प्रकीर्तितः’ (ब्रह्मवैवर्तपुराण १.६.५२)।
[९] ‘शिशब्दो मङ्गलार्थश्च वकारो दातृवाचकः, मङ्गलानां प्रदाता यः स शिवः
परिकीर्त्तितः’ (ब्रह्मवैवर्तपुराण २.५६.५३)।
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Nityānanda Miśra
http://nmisra.googlepages.com
Thanks to Sri Nityananda Misra for this post. The Mahabharata reference he
gives is from the Drona Parva. A verse in that parva says that in this
dialogue, between Veda Vyasa and Ashwatthama, the Shatarudriyam (the vedic
mantra portion that is chanted by vaidikas during Shiva puja/abhishekam,
etc.) is elucidated:
धन्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं वेदैश्च सम्मितम्।
देवदेवस्य ते पार्थ व्याख्यातं शतरुद्रियम्। 5-203-148a
5-203-148b
Om Tat Sat
subbu
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