[Advaita-l] A case where smriti can override shruti
V Subrahmanian
v.subrahmanian at gmail.com
Tue Nov 26 05:06:24 EST 2019
A nice short post by Sri Rahul Smartha:
स्मृति अपेक्षा श्रुति प्रबल है - यही सामान्य स्थलों पर देखते है | किन्तु
विगत वर्ष एक लेख पड़ते समय हमे पता चला कि स्थलविशेष में श्रुति का बाध स्मृति
से होता है, पर उदाहरण नहीं दिया था तो ठीक से समझ नहीं आया |
कल अद्वैतसिद्धि पर एक हिंदी टीका अध्ययन करते समय शाबरभाष्य के सन्दर्भ सहित
इसका उदाहरण मिल गया | पदार्थविधायक श्रुति एवं पदार्थक्रमविधायक स्मृति |
बिना पदार्थज्ञान हुए पदार्थक्रम का ज्ञान होना असंभव है , क्रमज्ञान के लिए
पदार्थज्ञान की अपेक्षा होती है | अतः पदार्थ = अंगी एवं क्रम = अंग | इसलिए
अंगीरूप प्रबल प्रमेय का बल से बलीयान होकर स्मृति अंगरूप दुर्बल प्रमेयबोधक
श्रुति का बाध करने में समर्थ बनता है |
प्रमाण की बात जहाँ है वहां स्मृति अपेक्षा श्रुति ही प्रबल प्रमाण है |
किन्तु विषय की बात जहाँ है, वहां पदार्थ = धर्मी एवं पदार्थक्रम = धर्मीभूत
धर्म | अतः स्मृति धर्मीरूप प्रबल पदार्थाश्रित होकर धर्मरूप दुर्बल
पदार्थाश्रित श्रुति का बाध करने में सक्षम है |
वह लेख में यह भी पड़ा था कि इसे अति प्रसिद्ध विद्वान् म.म श्री मणि द्राविड़
शास्त्री जी ने लौकिक एवं पौराणिक दृष्टान्त देकर स्पष्ट कर दिए |
प्रथम उदाहरण लौकिक सन्दर्भ से है ---
अत्यन्तबलवन्तोऽपि पौरजानपदा जनाः |.
दुर्बलैरपि बाध्यन्ते पुरुषैः पार्थिवाश्रितैः ||
~ वार्तिककार भट्टपाद श्री कुमारिल
राजा के आश्रित होकर अपेक्षाकृत क्षीणदेहसंपन्न पुरुष पुर एवं नगरवासी अत्यंत
बलिष्ठ पुरुष को भी झुका देने में समर्थ बनता है |
द्वितीय उदाहरण पौराणिक सन्दर्भ से है ---
नीचाश्रयो न कर्तव्यः कर्तव्यो महदाश्रयः।
ईशाश्रयो महानागः पप्रच्छ गरुडं सुखम्॥
भगवान् महादेव के कंठलग्न महासर्प ईश्वराश्रयरूप बल से निर्भय होकर चिरवैरी
विष्णुवाहन गरुढ़ से कुशलादि पूछते रहते है ।
Those needing a translation in English may please click there on this URL:
https://www.facebook.com/rahul.advaitin/posts/2566173646791596
Disclaimer: The translation may not be very accurate.
regards
subbu
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