[Advaita-l] Bhamati, Vivarana and Vartika on various doctrinal aspects of Advaita

V Subrahmanian v.subrahmanian at gmail.com
Sun Jan 30 01:57:52 EST 2022


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Sri Rahul Pandav has made this very informative post in Hindi.

==== विवरण, वार्तिक और भामती प्रस्थानों की तुलनात्मक आलोचना ====
१. अविद्या का आश्रय और विषय :-
विवरण - आश्रय और विषय दोनों शुद्धचैतन्य
वार्तिक - आश्रय और विषय दोनों शुद्धचैतन्य
भामती - आश्रय जीव और विषय शुद्धचैतन्य
२. अविद्या का नानात्व :-
विवरण - अविद्या एक, उसकी नानात्वप्रतीति भ्रममूलक
वार्तिक - अविद्या एक, उपाधिभेद से उसकी नानात्व कल्पितमात्र होते है
भामती - जीवभेद से अविद्या भिन्न है
३. जीवेश्वरप्रक्रिया :-
विवरण - प्रतिबिम्बवाद
वार्तिक - आभासवाद
भामती - अवच्छेदवाद
४. ईश्वरस्वरुप :-
विवरण - अज्ञानोपहितशुद्धचैतन्यरूप बिम्बचैतन्य ही मायाधीश ईश्वर है
वार्तिक -  साभास समष्टिभूताज्ञान के साथ तादात्म्यप्राप्त शुद्धचैतन्य ईश्वर
है
भामती - अज्ञान के विषयीभूतरूप से शुद्धचैतन्य ही ईश्वर प्रतीत होते है
५. जीवस्वरुप :-
विवरण - अन्तःकरण-तत्संस्कारावच्छिन्नाज्ञानप्रतिबिंबितचैतन्य
वार्तिक - चिदाभासविशिष्ट व्यष्टि-अज्ञानकार्य भूतबुद्धि के साथ
तादात्म्यप्राप्त शुद्धचैतन्य
भामती - अन्तःकरणावच्छिन्न-शुद्धचैतन्य (मतान्तर से
अविद्यावच्छिन्न-शुद्धचैतन्य)
६. जगत्कारण :-
विवरण - बिम्बचैतन्य अभिन्न-निमित्तोपादान
वार्तिक - शुद्धचैतन्य अभिन्न-निमित्तोपादान
भामती - जीवाश्रिता अविद्या से विषयीकृत होकर शुद्धचैतन्य उपादान बनते है और
अविद्या सहकारी कारण, कार्यानुगत द्वारकारण नहीं
७. जीवभेद :-
विवरण - अज्ञान एक होनेसे यद्यपि वस्तुतः जीव एक है किन्तु
अंतःकरण-तत्संस्कारावच्छिन्नरूपसे जीव अनेक रूप से गृहीतमात्र होते है
वार्तिक - बुद्धिभेदवशतः एक ही जीव अनेक रूप से गृहीतमात्र होते है
भामती - अज्ञान की नानात्ववशतः अविद्यावच्छिन्न जीव अनेक है और प्रत्येक जीव
के प्रपंच भिन्न तथा उस जीव से व्याप्त है
८. साक्षीस्वरुप :-
विवरण - साक्षी एक है और वह है शुद्धचैतन्य
वार्तिक - साक्षी एक है और वह है ईश्वर
भामती - अधिष्ठानरूप से विराजमान एक ईश्वर ही साक्षी है
९. बिम्ब-प्रतिबिम्ब स्वरुप :-
विवरण - बिम्ब और प्रतिबिम्ब दोनों स्वरूपतः पारमार्थिक, किन्तु
बिम्बत्व-प्रतिबिम्बत्व तथा दोनों के भेद यह सभी औपचारिक है
वार्तिक - प्रतिबिम्ब अज्ञानरूप उपाधितन्त्र होनेसे वह स्वरूपतः मिथ्या (
बिम्ब से भिन्न-अभिन्नत्वेन अनिर्वचनीय ) है
भामती - बिम्ब और प्रतिबिम्ब दोनों स्वरूपतः एक और अभिन्न हैं
१०. चित्प्रतिबिम्ब की संभावना :-
विवरण - नीरूप, निरवयव शुद्धचैतन्य का प्रतिबिम्ब संभव है
वार्तिक - नीरूप, निरवयव शुद्धचैतन्य का प्रतिबिम्ब संभव होनेपर भी वह केवल
मिथ्या आभासमात्र (न्यूनसत्ताक) है
भामती - नीरूप, निरवयव शुद्धचैतन्य का प्रतिबिम्ब असंभव
११. बंधनस्वरुप :-
विवरण - अविद्योपाहितत्ववशतः बिम्ब-प्रतिबिम्ब-अनुस्यूत एक शुद्धचैतन्य से
स्वयं को भिन्न समझना ही बंधन, अविद्योपाहितत्वनाश ही मोक्ष
वार्तिक - अविद्याप्रयुक्त अन्योन्याध्यासवशतः बुद्धिगत चिदाभास के साथ
शुद्धचैतन्य का तादात्म्यभाव ही उसका बंधन और आभासनिवृत्ति ही मोक्ष
भामती - अविद्याकल्पित देहादिबुद्धिरूप से स्वयं को अवच्छिन्न समझना ही बंधन
कहलाते है, अविद्याकल्पित अवच्छेदनाश ही मोक्ष
१२. मन की इन्द्रियत्व :-
विवरण - मन इन्द्रिय नहीं, अविद्याजन्य उपाधिविशेष है
वार्तिक - मन इन्द्रिय नहीं, अविद्यावृत्तिविशेष है
भामती - मन इन्द्रियविशेष है
१३. ब्रह्मसाक्षात्कार करण :-
विवरण - महावाक्यरूप शब्द
वार्तिक - महावाक्यजन्य प्रसंख्यानाकारावृत्तिविशेष ( प्रसंख्यान का अर्थ किसी
योगप्रक्रियाविशेष अथवा ध्यान नहीं, किन्तु अभेदाकारा वृत्तिविशेष )
भामती - महावाक्यश्रवणादिसंस्कृत मन
१४. शब्दापरोक्षवाद :-
विवरण - सादर से स्वीकृत
वार्तिक - सविशेष युक्तिसहकृत होकर स्वीकृत
भामती - परित्याज्य
१५. ईश्वरसत्ता :-
विवरण - अज्ञानोपाहित बिम्बभूत ईश्वरचैतन्य स्वरूपतः परमार्थ
वार्तिक - ईश्वर अनिर्वचनीय, अज्ञानानुपाहित शुद्धचैतन्य परमार्थ
भामती - अज्ञानाश्रित अर्थात् शुद्धचैतन्य का ईश्वरत्व जीव की अविद्याकल्पित
१६. अंतःकरणवृत्ति की मुख्य उपयोगिता :-
विवरण - अविद्यावरणभंगार्थ
वार्तिक - अविद्यावरणभंगार्थ
भामती - द्विविधार्थ - चिदुपराग और अविद्यावरणभंग
१७. निष्काम कर्म की उपयोगिता :-
विवरण -विविदिषा-उत्पत्ति, गुरुसान्निध्यलाभ इत्यादि से लेकर ज्ञानोदय में
वार्तिक - विविदिषारूप-प्रत्यक्प्रावण्योदय तक ही कर्मानुष्ठान उपयोगी
भामती - विविदिषा-उत्पत्तिमात्र में
१८. स्वाध्याय-अध्ययनविधि :-
विवरण - अक्षरावाप्तिमात्रफलक
वार्तिक - तात्पर्यज्ञानमात्रफलक
भामती - अर्थावबोधमात्रफलक
१९. ज्ञान में अपूर्व-अंगत्व :-
विवरण - श्रवणादिनिष्पादन ज्ञानोत्पत्ति में अनन्यव्यापार है और श्रवणादि
दृष्टफलक होनेसे ज्ञान में अपूर्व-अंगत्व स्वीकृत नहीं होते
वार्तिक - विद्यासाधन वेदान्तश्रवणादि में अधिकारी के विशेषणरूप से
संन्यास-अपूर्व स्वीकार्य होनेसे ज्ञानोदय में उसकी उपयोगिता स्वीकृत
भामती -  ज्ञानोत्पत्ति में संन्यासद्वारा उत्पन्न अपूर्वविशेष की अंगता
स्वीकृत
२०. ब्रह्मविचार में मूलीभूता श्रुति :-
विवरण - " श्रोतव्यो मन्तव्यो ... " , महावाक्यश्रवण ज्ञान का मुख्य साधन,
मनन-निदिध्यासन श्रवण का अंग
वार्तिक - ब्रह्मविचार में मूलीभूता श्रुति विषयान्तर में
प्रवृत्तिनिवृत्तिफलक " श्रोतव्यो मन्तव्यो ... " है, श्रवण अंगी, मनन और
निदिध्यासन ( विज्ञान अर्थात् तत्त्वसाक्षात्कारोदय से ठीक पहले
निर्विचिकित्सारूपी बुद्धि ) अंगे है ; अथवा, महावाक्यादि का तात्पर्यनिर्णय
ही ब्रह्मविचार में प्रवृत्ति का मूल है
भामती -  " स्वाध्यायोsध्येतव्यः ... " , निदिध्यासन ज्ञान का मुख्य साधन,
श्रवण-मनन अंग
२१. श्रवणादि में विधि :-
विवरण - नियमविधि
वार्तिक - परिसंख्याविधि
भामती - विधि का अभाव
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साभार :- पियाली पालित, संपादिका, संक्षेपशारीरकम्, बंगानुवाद , श्रीरामकृष्ण
मठ


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