[Advaita-l] Fwd: Brahman has no default form; Only contextual form - Varaha Purana
V Subrahmanian
v.subrahmanian at gmail.com
Tue Feb 28 12:32:57 EST 2023
Re-posting here an old post I had posted in this forum: [The Panchadashi
verses cited are interesting. Commentaries can be studied. I have not gone
into all of them.]
Post by Sri Smartha Rahul:
न च मायाया आश्रयं प्रत्यव्यामोहकत्वं नियतम् , विष्णोः स्वाश्रितमाययैव
रामावतारे मोहितत्वात् । "
~ विवरणप्रमेयसंग्रहः, सूत्र १, वर्णक १ (अध्यासविचार)
ऐसा भी कोई नियम नहीं कि माया अपने आश्रयको व्यामोहित नहीं करती, क्योंकि
विष्णु अपनी माया से ही रामावतार में मोहित हुए थे, यह देखा गया -
" असंभवं हेममृगस्य जन्म तथापि रामो लुलुभे मृगाय । " ~ हितोपदेश
किन्तु यदि ईश्वर भी जीव की तरह माया से व्यामोहित होते हैं , तो जीव और ईश्वर
में क्या भेद रहेगा ?
इसका उत्तर भगवान् शंकराचार्य ने सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारसङ्ग्रहः में देते
हुए कहा -
तस्मादावृतिविक्षेपौ किञ्चित्कर्तुं न शक्नुतः।
स्वयमेव स्वतन्त्रोऽसौ तत्प्रवृत्तिनिरोधयोः ॥
~ सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारसङ्ग्रहः, ५०६
आवरणशक्ति एवं विक्षेपशक्ति ईश्वरमें अपना कुछ भी फल नहीं कर सकती, परन्तु
ईश्वर ही इन दोनों शक्तियों की प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के विषय में स्वतन्त्र
हैं ।
यही ईश्वर एवं जीव में महान् वैलक्षण्य हैं । गीता में श्रीभगवान् ने स्वयं
कहा -
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥ ~ गीता ४.६
सिद्धान्तलेशसंग्रहकारका कहना हैं कि #ब्राह्मणों_द्वारा_दिए_गए_
शापोंमें_अमोघत्व
<https://www.facebook.com/hashtag/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A5%8B%E0%A4%82_%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE_%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%8F_%E0%A4%97%E0%A4%8F_%E0%A4%B6%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82_%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%98%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B5?epa=HASHTAG>
आदि
स्वकृत मर्यादाके प्रतिपालनके लिए और किसी प्रकारसे भृगुऋषिके शापादिके
सत्यत्वप्रख्यापनके लिए नटके समान वह केवल अभिनयमात्र करता हैं, इसके सूचनके
लिए ही रामादि अवतारोंमें अज्ञानका कथन हैं, वस्तुतः नहीं -
" आत्मानं मानुषं मन्ये रामं दशरथात्मजम् । "
~ वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड, सर्ग १२०, श्लोक १२
राज्याद्भ्रंशो वने वासः सीता नष्टा हतो द्विजः |
ईदृशीयं ममालक्ष्मीर्निर्दहेदपि पावकम् ||
~ वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग ६७, श्लोक २४
न मद्विधो दुष्कृतकर्मकारी मन्ये द्वितीयोस्ति वसुंधरायाम् ||
~ वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग ६३, श्लोक ३
ईश्वरने संसारके निर्माणके समय इसकी ठीक-ठीक व्यवस्था रहे इसलिए मर्यादा बनायी
हैं, जैसे ब्राह्मणोंके शापमें अवन्धत्व आदि । उस मर्यादाका परिपालन करनेके
लिए स्वयं ईश्वरावतार भी लोकमें अनुग्रहवशतः वैसा ही आचरण करता हैं जिससे
मर्यादाका भंग न हो । यदि ऐसा न माना जाय, तो उस परमात्मामें नित्यमुक्तत्व,
निरवग्रहस्वातन्त्र्य, एवं सम और अभ्यधिकके राहित्य आदिका जो श्रुतिने
प्रतिपादन किया हैं, उसका विरोध हो जायगा ।
शंका :- यदि श्रीरामचन्द्रका दुःखभोग प्रारब्धके कारण माना जाय, तो -
अवश्यंभाविभावानां प्रतीकारो भवेद्यदि ।
तदा दुःखैर्न लिप्येरन् नलरामयुधिष्ठिराः ॥
प्रारब्ध का फल अनिवार्य हैं एवं ईश्वर भी प्रारब्ध परिहारमें असमर्थ हो तो
ईश्वरका ईश्वरभाव नष्ट होता हैं ।
उत्तर :- इससे उनका ईश्वरत्वमें कोई हानि नहीं हैं, क्योंकि -
न चेश्वरत्वमीशस्य हीयते तावता यतः ।
अवश्यंभाविताऽप्येषामीश्वरेणैव निर्मिता ॥
~ पञ्चदशी, तृप्तिदीपप्रकरण, श्लोक १५६-१५७
इन दुःखों की आवश्यंभाविता भी ईश्वरकर्तृक विहित हुआ हैं ।
|| जय श्री राम ||
On Tue, Feb 28, 2023 at 10:45 PM V Subrahmanian <v.subrahmanian at gmail.com>
wrote:
> In my earlier post the Sanskrit parts were erroneously copied by me. The
> correct reading is shown here:
>
> तथा च अप्राकृतपदेन प्राकृतविलक्षणमायोपाधिकत्वेन.... If anyone can
> elucidate this line that would help....
>
> He says this in the gloss for the Siddhi's words: अत एव
> 'अरूपतोऽप्राकृतश्चे'ति स्मृत्यैवारूपश्रुतिगत्युक्तेः...(Pariccheda 2
> ananthakrishna Sastry edition page 744)
>
> regards
> subbu
>
> On Tue, Feb 28, 2023 at 11:46 AM V Subrahmanian <v.subrahmanian at gmail.com>
> wrote:
>
>>
>>
>> On Tue, Feb 28, 2023 at 10:06 AM H S Chandramouli via Advaita-l <
>> advaita-l at lists.advaita-vedanta.org> wrote:
>>
>>> Namaste.
>>>
>>> Sri Subrahmanian Ji wrote
>>>
>>> Reg << Even in the case of the form of say, Krishna, the 'bhautika'
>>> element is
>>> very much there: From a fetus in the womb, to the baby, there was growing
>>> up into an adult, a man and one who became grand and great grandfather.
>>> All
>>> these are characteristics of any other human body >>,
>>>
>>> Body of Sri Krishna is not admitted to be “bhautika”.
>>>
>>
>> Namaste.
>>
>> I am aware of the fact that it is not bhautika. But such a body was
>> 'conceived' in the womb, delivered, grew up, became old, etc. There is
>> also a mention in the Bhagavatam that Krishna was even wounded by arrows
>> and bled. Surely the need for sleep, food, etc. was also there. One might
>> say all this is 'leela'. But the body behaved in no different way than any
>> other body. Krishna also was cremated for which Arjuna had gone. All this
>> is not due to karma of the ordinary jiva type.
>>
>> I meant only this. The bhautika element can't be ignored. Mayopadhi can
>> be of this nature too. This is what the Laghuchandrika says for 'aprAkRta'
>> in Advaitasiddhi:
>>
>> तथा च अप्राकृतपदेन प्राकृतविलक्ष्सणमायोपाधिकत्वेन.... If anyone can
>> elucidate this line that would help....
>>
>> He says this in the gloss for the Siddhi's words: अत एव
>> 'अरूपतोऽप्राकृतशे'ति स्मृत्यैवारूपश्रुतिगत्युक्तेः...(Pariccheda 2
>> ananthakrishna Sastry edition page 744)
>>
>> regards
>> subbu
>>
>>>
>>>
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