[Advaita-l] A post in Hindi on The objection: How is the world superimposition possible sans a real world to start with?

V Subrahmanian v.subrahmanian at gmail.com
Mon Nov 24 02:20:15 EST 2025


डॉ स्मार्त राहुल's post

https://www.facebook.com/rahul.advaitin/posts/pfbid0292FT6Wpb2gfZCVYY3k2trF7e4DPSY48WhfAKL5xyqsxoBsLT5vQJxU5Uptz2vjhLl

आक्षेप : रज्जु में सर्प का अध्यास उसी के लिए संभव होता है जो पूर्व में कहीं
सत्य (अर्थक्रियाकारित्वयुक्त—विषधरत्वादि गुणविशिष्ट) सर्प का अनुभव किया हो।
इसी प्रकार ब्रह्म में जगत् का अध्यास होने के लिए पूर्वानुभूत सत्य
(पारमार्थिक) जगत् का अस्तित्व भी स्वीकार करना पड़ेगा, अन्यथा जगत् का अध्यास
होना ही संभव नहीं !
समाधान : जिन्होंने कभी विषधरत्वादि गुणविशिष्ट सर्प न देखा हो, उसके लिए भी
चित्र-लिखित सर्प को देखकर ‘सर्प ऐसा होता है’ ऐसी भावना दृढ़ हो जाने पर, कभी
निमित्त के होने पर रज्जु में सर्प का आरोप हो सकता है। इसलिए भ्रम में आरोपित
वस्तु के ज्ञान का संस्कार कारण है; वस्तु के सत्यत्व की अपेक्षा नहीं है।
संस्कार तो मिथ्याभूत वस्तु से भी हो सकता है। जिस पुरुष को धूलि-कदम्ब में
पहले धूम का भ्रम हुआ है, उस पुरुष को भी धूम का संस्कार होता ही है।
जगताध्यास कार्याध्यास है, अतः सादि अध्यास है। कल्पान्तर में जगत् का अनुभव
हो चुका है। यद्यपि वह अनुभव अध्यस्त होने से अयथार्थ ही है, तथापि वह संस्कार
को उत्पन्न कर सकता है। यद्यपि इस प्रकार संस्कार और अध्यास का अन्योन्याश्रय
प्रतीत होता है, तथापि बीजांकुर न्याय से उसका परिहार करना चाहिए।
कार्याध्यास प्रवाहरूप से बीज और अंकुर के समान अनादि काल से चला आ रहा है—ऐसा
कह देने से कोई दोष नहीं है।
आक्षेप : चित्र में सर्प तभी हो सकता है जब वास्तव में कहीं विषधरत्वादि
गुणयुक्त सर्प चित्रकार ने देखा हो। यदि विषधरत्वादि गुणयुक्त सर्प अत्यन्त
अननुभूत हो, तो चित्र में भी सर्पदर्शन एवं तज्जन्य संस्कारोत्पत्ति संभव
नहीं।
समाधान : वादी देहात्मबोध को भ्रम (अध्यास) मानते हैं अथवा नहीं?
द्वितीय पक्ष में वादी नास्तिक देहात्मवादी चार्वाक सिद्ध होंगे।
और प्रथम पक्ष में देहात्मबोध अध्यास सिद्ध हो जाने पर तो वादी से हम पूछेंगे
कि—
केवल देह और आत्मा में प्रतीत ऐक्य को मिथ्या मानेंगे, अथवा देह को भी मिथ्या
मानेंगे ?
द्वितीय पक्ष तो भेदवादी नहीं मानते। प्रथम पक्ष में क्या भेदवादी मिथ्या
देहात्मैक्य की अपेक्षा सत्य पारमार्थिक देहात्मैक्य स्वीकार करेंगे ? अन्यथा
भेदवादी के आक्षेप अनुसार तो देहात्मबोध को अध्यास सिद्ध ही नहीं किया जा सकता
!
इसलिए अद्वैती के प्रति किया गया आक्षेप निःसार एवं वादी के लिए ही घातक सिद्ध
होता है।


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