[Advaita-l] An article in Hindi on Maayaa who is Devi

V Subrahmanian v.subrahmanian at gmail.com
Tue Oct 1 12:50:21 EDT 2019


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वेदान्त में माया को मिथ्या कहा गया हैं । मिथ्यापदार्थ अधिष्ठान में कल्पित
होता हैं । अधिष्ठान सत्ता से अतिरिक्त कल्पित की सत्ता नहीं हुआ करती । माया
में अधिष्ठान की ही सत्ता का प्रवेश रहता हैं, अतः माया स्वरुप की उपासना से
भी सत्तास्वरुप ब्रह्म की ही उपासना होगी । जैसे ब्रह्म की उपासना में भी केवल
ब्रह्म की उपासना नहीं होती, किन्तु शक्तिविशिष्ट ही ब्रह्म की उपासना होती
हैं, क्योंकि ब्रह्म से पृथक होकर शक्ति नहीं रह सकती और केवल ब्रह्म की
उपासना हो नहीं सकती, वैसे ही केवल माया की भी उपासना संभव नहीं हो सकती ।
केवल माया की स्थिति ही नहीं बन सकती, फिर उपासना तो दूर रही । अधिष्ठानभूत
ब्रह्म से युक्त होकर ही माया रहती हैं, अतः भगवती की मायारूपता वर्णन करने पर
भी फलतः ब्रह्मरूपता ही सिद्ध होती हैं ।

पावकस्योष्णतेवेयमुष्णांशोरिव दीधितिः ।
चन्द्रस्य चन्द्रिकेवेयं ममेयं सहजा ध्रुवा ॥

अर्थात् जैसे पावक में उष्णता रहती हैं, सूर्य में किरण रहती हैं, चंद्रमा में
चंद्रिका रहती हैं, वैसे ही शिव में उसकी सहज-शक्ति रहती हैं । इस तरह
विश्वस्वरूपभूता शक्ति के रूप में भगवती का वर्णन मिलता हैं । जैसे अग्नि में
होम करने पर भी अग्नि-शक्ति में होम समझा जाता हैं, वैसे ही अग्नि-शक्ति में
होम करने से अग्नि में होम समझा जाता हैं । इसी तरह माया को भगवती कहने पर भी
ब्रह्म को भगवती समझा जा सकता हैं, अतः ब्रह्म की ही उपासना समझनी चाहिए । जो
वाक्य माया को मिथ्या प्रतिपादित करते हैं, उनमें तो केवल माया का ही ग्रहण
होता हैं, क्योंकि ब्रह्म का मिथ्यात्व नहीं हैं, वह तो त्रिकालावाध्य
सत्यस्वरुप अधिष्ठान हैं । उपास्य मायापदार्थान्तर्गत ब्रह्मांश मोक्षदशा में
भी अनुस्यूत रहेगा, अतः मुक्ति में उपास्यस्वरुप का त्याग भी नहीं होगा ।
अन्तर्यामि ब्राह्मण में पृथ्वी से लेकर माया पर्यन्त सभी पदार्थों को चेतन
सम्बन्ध से देवता बतलाया गया हैं । " सर्वं खल्विदं ब्रह्म " इस श्रुति के
अनुसार भी सब कुछ ब्रह्म ही हैं ऐसा कहा गया हैं ।

~ श्री करपात्रीजी महाराज के ' लिंगोपासना रहस्य भगवती तत्त्व ' से

।। जय माँ दुर्गा ।।


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