[Advaita-l] Anandagiri's devotion to Bhavani pati in the Brihad.bha.Sureshwara Vartika
V Subrahmanian
v.subrahmanian at gmail.com
Sun Oct 23 02:07:27 EDT 2022
Post of Shri Natraj Maneshinde in FB:
Anaandagiri is the commentator for the entire Prasthana traya Bhashya of
Shankaracharya and the Bhashya vartika of Sureshwarachara:
त्वङ्गत्तुङ्गभुजङ्गसङ्गगहनप्रत्युद्यङ्गद्युति-
भ्रश्यद्विश्वदिगङ्गन्तरालबहुलप्रौढान्धकाराङ्कुरः।
सोमः सोमकलाकलापकलितो लावण्यकारुण्यभूर्
भूयान्नो निरवद्यबोधविधये* देवो भवानीपतिः*॥
~ श्री आनन्दगिरि आचार्य, शास्त्रदीपिका (टीका on बृहदारण्यक भाष्य वार्तिक)
[हिलते हुई [फण] उठाये हुए भुजङ्ग [सर्पों] के मेल से भरे हुए जिनके शरीर से
निकलती हुई द्युति से विश्व की दिशाओं दिशाओं में व्याप्त अन्धकार के बहुत से
बढ़ते हुए अङ्कुर नष्ट (भ्रष्ट) कर दिये जा रहे हैं ऐसे सोम [चन्द्र] की कला के
आभूषण से विभूषित सुन्दरता और करुणा के स्थान उमासहित [सोम] भगवान् भवानीपति
हमारे निरवद्य [रागादि दोष से रहित] बोध [ज्ञान] के करने वाले हों
[निरवद्यज्ञान के हेतु बनें]।]
The gist of the verse is: Shiva's inherent splendor pervades the entire
universe, dispelling the darkness enveloping the universe.
The verse can be seen here: (verse no.3):
https://archive.org/details/Anandashram_Samskrita_Granthavali_Anandashram_Sanskrit_Series/ASS_016_Brahadaranyakopnishad_Bhashya_Vartikam_Vol_1_Sambandhavartika_-_KS_Agase_1892/page/n21/mode/2up
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